बिहार दिवस विशेषांक: एक शिक्षक की कलम से…

बिहार दिवस विशेषांक

सारे बिहारवासियों को आगामी बिहार दिवस की हार्दिक शुभकामनायें…….. आइये आज हम बिहार के बारे में कुछ बातें जानते हैं।जिन पर हमें गर्व हो सकता है और हैरानी भी लेकिन जरा संभल कर ! मेरी बातें संकट पैदा करती हैं।पुरे हिंदुस्तान को मैं यह बताना चाहूँगा की बिहार का इतिहास ही भारतवर्ष का मूल इतिहास भी है और ऐसा कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। ऋग्वैदिक काल से ही बिहार ने पुरे विश्व को दिशा दी है।भारतीय षड्दर्शनों में योग,सांख्य ,न्याय और वैशेषिक की जन्मस्थली बिहार है।याज्ञयव्लक्य  ,पाणिनि , गार्गी, जनक, विश्वामित्र की धरती रही है यह पावन भूमि।शंकराचार्य इसी बिहार की धरती पर आकर पराजित हुए।शतपथ ब्राह्मण की रचना के पूर्व भी हमारा अस्तित्व विद्यमान था ।कूटनीति के महापंडित चाणक्य ने यहीं से पुरे भारतवर्ष का इतिहास और भूगोल बदल डाला था ।भारत का प्रथम साम्राज्य-मगध साम्राज्य यही पनपा।विश्व को प्रथम गणराज्य देने वाले हमारे वैशाली के वंशज ही थे।हमारी धरती पर आकर ही महात्मा बुद्ध “एशिया का ज्योतिपुंज” के नाम से विख्यात हुए।अहिंसा का संदेश हम तब से देते आ रहे हैं जब पश्चिम के लोग ज्ञान-विज्ञानं से कोसों दूर थे।बिहार के सपूत सुश्रुत को शल्यचिकित्सा का पिता होने का गौरव प्राप्त है।बिहार के लाल वात्स्यायन के प्रेम की सर्वोत्तम कृति कामसूत्र की रचना स्थली होने का गौरव भी बिहार की मिट्टी को मिला है।बिहार के सपूत सम्राट अशोक को “देवानाम् प्रियदर्शी” कहा गया है जिन्होंने भारत वह राजकीय चिन्ह “अशोक चक्र” प्रदान किया है जो हमारे तिरंगे झंडे की शान में चार चाँद लगाता है।मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम का चरित्र-चित्रण करने वाले एवं आदिकवि वाल्मीकि की आश्रम-स्थली यही रही है।महान गणितज्ञ आर्यभट्ट के द्वारा दूनिया को शुन्य और दशमलव का ज्ञान हमीं ने कराया था।जीवक,अश्वघोष,घोषा,मंडन मिश्र और विद्यापति जैसे रचनाकारों ने यही से अपनी रचनाएँ प्रकाशित की।हिंदी काव्य की शुरुआत हमारे बिहार से ही हुई थी । हर्षवर्द्धन के दरबार की शोभा बिहारी बाणभट्ट से ही थी।दिल्ली की गद्दी पर या तो सुल्तान बैठे या मुग़ल ,तीसरा कोई बैठा तो वह बिहारी शेरशाह सूरी थे ।इसी बिहारी सपूत ने ग्रैंड ट्रंक रोड का विस्तार बंगाल तक कराया।बिहारी रचनाकार ‘मोहसिन फानी’ ने ही सर्वप्रथम अकबर के ‘दीन -ए-इलाही’ को धर्म की संज्ञा दी थी।खालसा-पंथ की शुरुआत  एवं पंचककार का नारा एक बिहारी ‘गुरु गोविन्द सिंह जी’ ने दिया था। ‘अस्सी बरस का जवान’ यहीं के वीर कुंवर सिंह थे।आज़ादी की लड़ाई में बिहार का योगदान कितना ज्यादा था ,इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है की आजादी के बाद भारत का प्रथम नागरिक एक बिहारी को बनाया गया।पर आज़ादी क्या मिली;भारत ने पीर अली,शेख भिखारी,बैकुंठ शुक्ल,योगेन्द्र शुक्ल,रामप्यारी देवी,अब्दुल बारी,चुनचुन पाण्डेय,खुदीराम बोस जैसे वीर शहीदों की शहादत को  भुला दिया।ये तो चंद बानगी भर है शहीदों की,सारा बिहार ही क्रान्तिकारी हो चूका था उस वक्त।आजादी मिली सारे देश को;हमें मिला ‘रेलवे समानीकरण’।भारत के हरेक राज्य को फायदा पहुँचाया गया पर हमारे हिस्से आई बाढ़ की तबाही ।देश को ऋग्वैदिक काल से लेकर नितीश कुमार तक ने देश को राह दिखाने का काम किया है ।चाहे बात नालंदा,ओदंतपुरी या विक्रमशिला विश्वविद्यालय  की हो या स्पीडी ट्रायल की,कृषि कैबिनेट,लोकायुक्त,पंचायत-चुनावों में महिला-आरक्षण की बात हो या विधायक निधि में बदलाव या सुधार  की।मेरी गोद मे ही विश्व का प्रथम योग विश्वविद्यालय अवस्थित् है।प्रख्यात कवि दिनकर को राष्ट्रकवि कि उपाधि से नवाजा गाय जो एक बिहारी ही थे।हमने हमेशा ही देश की दिशा एवं दशा तय की है।पर विडम्बना देखिये हमारे बिहार की,जिस क्रिकेट के खेल में भारत दो-दो बार विश्व कप जीत चूका है,उस खेल में वर्तमान समय में बिहार राज्य का कोई प्रतिधिनित्व नहीं है।राजनीती की हद देखिये एक नहीं पुरे तीन-तीन क्रिकेट संघ हैं बिहार में पर मान्यता एक को भी नहीं है…..क्योंकि हम बिहारी खेल में भी राजनीती करने से बाज नहीं आते। सत्याग्रह का प्रथम प्रयोग हमारी धरती पर ही हुआ मोहनदास करमचंद गाँधी को महात्मा गाँधी हमने ही बनाया।आपातकाल का सबसे मुखर विरोध हम बिहारियों ने ही किया। आपातकाल के दौरान जब आन्दोलन नेतृत्व विहीन हो चला था तब बिहारी लोकनायक ने देश को रास्ता दिखाया।उस समय तो सारा भारत यही कहता था-‘जेपी नहीं ये आंधी है,देश का दूसरा गाँधी है’।

                  फिर भी जूझ रहे हैं हम आधारभूत संरचनाओं की समस्या से। हम हर वर्ष रोते हैं कोशी की तबाही पर।पर कौन पोंछता है हमारे आंसू ।आंसू सुख जाते हैं………….समयानुसार योग्यता की परिभाषा भी बदलती है।हमें विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिल सकता क्योंकि हम इसके मानदंडों पर खरा नही उतरते हैं लेकिन भारत की वास्तविक तरक्की तभी सार्थक हो सकेगी जब बिहार तरक्की करेगा। आखिर क्यूँ ‘रेलवे समानीकरण’ का खामियाजा हमीं ने भुगता ? कोसी हमें ही तबाह क्यों करती है?हम बिहारी ही गरीबी का दंश क्यूँ झेलें? हम बिहारियों को ही उपहास का पात्र क्यों समझा जाता है ? क्यों बार-बार हम ही प्रताड़ित होते हैं ? आखिर क्यूँ??? हर बिहारी इन सारे प्रश्नों का जवाब चाहता है।जबकि हम बिहारी जानते हैं की इन चुभते सवालों का जवाब किसी भी भारतीय के पास नहीं है।     


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